मंगलवार, 22 सितंबर 2015

बंदगी के सिवा ना हमें कुछ गंवारा हुआ

बंदगी के सिवा ना हमें कुछ गंवारा हुआ
आदमी ही सदा आदमी का सहारा हुआ

बिक रहे है सभी क्या इमां क्या मुहब्बत यहाँ
किसे अपना कहे,रब तलक ना हमारा हुआ

अब हवा में नमी भी दिखाने लगी है असर
क्या किसी आँख के भीगने का इशारा हुआ

आ गए बेखुदी में कहाँ हम नही जानते
रह गई प्यास आधी नदी नीर खारा हुआ

शाख सारी हरी हो गई ,फूल खिलने लगे
यूँ लगा प्यार उनको किसी से दुबारा हुआ



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

सबसे पहले हम अपने आप से पूछे की हम दौड़ क्यो रहे है।

  सबसे पहले हम अपने आप से पूछे की हम दौड़ क्यो रहे है। सबके दौड़ने के कारण अलग अलग होते है। शेर दौड़ता है अपने शिकार को पकड़ने के लिए हिरण दौड़ता...