शनिवार, 28 सितंबर 2024

राम नाम सत्य" है

 राम नाम सत्य" है......!!

अकबर के शासन काल - के समय कि बात है!
जब तुलसीदास अपने गांव में रहते थे। वह सदैव राम की भक्ति में लिप्त रहते थे। उनको घर वालों ने, और गाँव वालों ने- ढोंगी कह कर घर से बाहर निकाल दिया,! तो तुलसीदास जी, गंगा जी के घाट पर रहने लगे। और वहीं- प्रभु की भक्ति करने लगे।
जब तुलसीदास "रामचरितमानस " की रचना शुरू कर रहे थे! उसी दिन उनके गांव में एक लड़के का विवाह हुआ, और वह लडका अपनी नववधु को लेकर अपने घर आया। रात को किसी कारण वश उस लड़के की मृत्यु हो गई।
लड़के के घर वाले रोने लगे। सुबह होने पर सब लोग लड़के को अर्थी पर सजाकर शमशान घाट ले जाने लगे!
तो उस लड़के की पत्नी भी सती होने की इच्छा से अपने पति की अर्थी के पीछे पीछे जाने लगी।
लोग उसी मार्ग से जा रहे थे- जिस मार्ग में तुलसीदास जी रहते थे।
सब लोग जा रहे थे - तो लड़के की पत्नी की नजर तुलसीदास जी पर पड़ी।
उस नववधु ने सोचा- में अपने पति के साथ सती होने जा रही हूँ!
एक बार इस ब्राह्मण देवता को प्रणाम कर लेती हूँ!
वह नववधु नहीं जानती थी- कि ये तुलसीदास जी है।
उसने तुरंत तुलसीदास जी को पैर छुकर प्रणाम किया,और तुलसीदास ने उसे "अखण्ड सौभाग्यवती " होने का आशीर्वाद दिया!
तब सब लोग हँसने लगे,और बोले: तुलसीदास जी! हम तो सोचते थे,तुम पाखंडी हो, लेकिन तुम तो बहुत बड़े मूर्ख भी हो- यह अर्थी देख रहे हो- इस लड़की का पति मर चुका है।
यह अखण्ड सौभाग्यवती कैसे हो सकती है....? सब बोलने लगे- तू भी झुठा, तेरा राम भी झुठा।
तुलसीदास जी बोले: हम झुठे हो सकते हैं,लेकिन मेरे राम कभी भी झुठे नही हो सकते हैं।
सबने बोला: तब प्रमाण दो।
तुलसीदास जी ने अर्थी को रखवाया,और उस मरे हुये लड़के के पास जाकर उसके कान में बोला: -"राम नाम सत्य " है! ऐसा एक बार बोला तो लड़का हिलने लगा। दूसरी बार फिर बोला तुलसीदास जी ने लड़के के कान में- "राम नाम सत्य "है! लड़का थोडा सचेत हुआ। तुलसीदास जी ने फिर तीसरी बार उस लड़के के कान में बोला- "राम नाम सत्य " है! तो मृतक लड़का अर्थी से नीचे उठ कर बैठ गया। सभी को बहुत आश्चर्य हुआ, कि मृतक कैसे जीवित हो सकता है। सबने तुलसी दास जी को सिद्ध सन्त मान लिया-और तुलसीदास जी के चरणों में दण्डवत प्रणाम करके क्षमा मांगने लगे। तुलसीदास जी बोले:अगर आप लोग यहाँ इस मार्ग से नहीं जाते,तो मेरे राम के नाम को सत्य होने का प्रमाण कैसे मिलता ये तो सब हमारे राम जी की लीला है उसी दिन से मृतक के पीछे राम नाम सत्य है बोलने की प्रथा चल पड़ी..!!
जय श्रीराम 🙏🙏



शुक्रवार, 13 सितंबर 2024

ख्वाहिश नहीं, मुझे

 


ख्वाहिश नहीं, मुझे

मशहूर होने की,"
_आप मुझे "पहचानते" हो,_
_बस इतना ही "काफी" है।_😇
_अच्छे ने अच्छा और_
_बुरे ने बुरा "जाना" मुझे,_
_जिसकी जितनी "जरूरत" थी_
_उसने उतना ही "पहचाना "मुझे!_
_जिन्दगी का "फलसफा" भी_
_कितना अजीब है,_
_"शामें "कटती नहीं और_
-"साल" गुजरते चले जा रहे हैं!_
_एक अजीब सी_
_'दौड़' है ये जिन्दगी,_
-"जीत" जाओ तो कई_
-अपने "पीछे छूट" जाते हैं और_
_हार जाओ तो,_
_अपने ही "पीछे छोड़ "जाते हैं!_😥
_बैठ जाता हूँ_
_मिट्टी पे अक्सर,_
_मुझे अपनी_
_"औकात" अच्छी लगती है।_
_मैंने समंदर से_
_"सीखा "है जीने का तरीका,_
_चुपचाप से "बहना "और_
_अपनी "मौज" में रहना।_
_ऐसा नहीं कि मुझमें_
_कोई "ऐब "नहीं है,_
_पर सच कहता हूँ_
_मुझमें कोई "फरेब" नहीं है।_
_जल जाते हैं मेरे "अंदाज" से_,
_मेरे "दुश्मन",_
-एक मुद्दत से मैंने_
_न तो "मोहब्बत बदली"_
_और न ही "दोस्त बदले "हैं।_
_एक "घड़ी" खरीदकर_,
_हाथ में क्या बाँध ली,_
_"वक्त" पीछे ही_
_पड़ गया मेरे!_😓
_सोचा था घर बनाकर_
_बैठूँगा "सुकून" से,_
-पर घर की जरूरतों ने_
_"मुसाफिर" बना डाला मुझे!_
_"सुकून" की बात मत कर-
-बचपन वाला, "इतवार" अब नहीं आता!_😓😥
_जीवन की "भागदौड़" में_
_क्यूँ वक्त के साथ, "रंगत "खो जाती है ?_
-हँसती-खेलती जिन्दगी भी_
_आम हो जाती है!_😢
_एक सबेरा था_
_जब "हँसकर "उठते थे हम,_😊
-और आज कई बार, बिना मुस्कुराए_
_ही "शाम" हो जाती है!_😓
_कितने "दूर" निकल गए_
_रिश्तों को निभाते-निभाते,_😘
_खुद को "खो" दिया हमने_
_अपनों को "पाते-पाते"।_😥
_लोग कहते हैं_
_हम "मुस्कुराते "बहुत हैं,_😊
_और हम थक गए_,
_"दर्द छुपाते-छुपाते"!😥😥
_खुश हूँ और सबको_
_"खुश "रखता हूँ,_
_ *"लापरवाह" हूँ ख़ुद के लिए_*
*-मगर सबकी "परवाह" करता हूँ।_😇🙏*
*_मालूम है_*
*कोई मोल नहीं है "मेरा" फिर भी_*
*कुछ "अनमोल" लोगों से_*
*-"रिश्ते" रखता हूँ।*

बुधवार, 4 सितंबर 2024

सतपुतिया !





सत +पुतिया जैसा की नाम से ही पता चलता है कि सत अर्थात सात पुतिया शब्द पुत मतलब पुत्र से लिया गया है।
पुराने किस्से कहानी में अक्सर राजा, बनिया इत्यादि के सात पुत्र का वर्णन मिलता है।
जैसा की इसका नाम सात पुत्र से संबंधित है उसी प्रकार इसको खाने के पीछे भी वजह है।
उत्तर प्रदेश, बिहार या अन्य राज्यों में पुत्र के लम्बी आयु, उत्तम स्वास्थ्य के लिए माताएँ " ज्यूतिया "नाम का व्रत करती है। उस व्रत में सतपुतिया की सब्जी खाना अनिवार्य माना जाता है।
जहाँ पर आसानी से उपलब्ध हो जाती है वहाँ पर तो नहीं लेकिन पंजाब जैसे राज्यों में जहाँ पर इसकी खेती नहीं होती लेकिन उत्तर प्रदेश, बिहार के रहने वाले अधिक है और व्रत के दिन इस सब्जी की मांग होती है। व्रत वाले दिन वहाँ पर तो ये सोने के भाव बिकती है। उसी दिन ही सिर्फ सब्जी मंडी में दिखाई भी देती है।
गांव में तो गन्ने, मक्के के खेत में बो दी जाती है, कहीं खेतों की मेढ़ पर बो देते है और डंडे गाड़ कर रस्सी बांधकर चढ़ा देते है। ये ऐसी सब्जी है जिसका अपना कोई खेत नहीं होता है ये सहफ़सल के रूप में अन्य सब्जी या फ़सल के साथ खेत के किनारे या छप्पर, टाटी पर लटक कर अपना जीवन व्यतीत कर लेती है।
खेतों की मेढ़ पर बाढ़ जिसे हमारे अवध क्षेत्र में पाढ कहते है उस पर खूब फ़ैल जाती है। शाम के समय इस पर छोटे छोटे पीले फूलों की बाहार आ जाती है जिस पर तितलियाँ, भौरे गुन गुन गाते हुए आनंद लेते है।
ये सात फल के गुच्छे में होती है इसलिए इसका नाम सतपुतिया पड़ा है।
ये चार अंगुल से अधिक बड़ी नहीं होती है। बस जैसे ही तनिक हष्ट पुष्ट दिखे तोड़ लीजिये।
सुबह सुबह इसे नहला धुला कर, काट लीजिये। लोहे की कड़ाही में सरसों के तेल में,लहसुन,मिर्च का डाढ़ा (तड़का )देकर इसे धीमी आंच पर बनाइये। ये सब्जी पानी अधिक छोड़ती है इसलिए जब इसका पानी लगभग सूख जाये तब तीखा, चटपटा मिर्ची वाला नमक डालें। जब कड़ाही में हल्की हल्की चिपकने लगे तब समझिये पक गयी है।
फिर क्या गर्म गर्म रोटी या पराठे के साथ सुबह के नाश्ते का आनंद लें और स्वस्थ रहे, हमेशा निरोगित रहे।

 
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राम नाम सत्य" है

  राम नाम सत्य" है......!! अकबर के शासन काल - के समय कि बात है! जब तुलसीदास अपने गांव में रहते थे। वह सदैव राम की भक्ति में लिप्त रहते ...