राम नाम सत्य" है......!!
अकबर के शासन काल - के समय कि बात है!
जब तुलसीदास अपने गांव में रहते थे। वह सदैव राम की भक्ति में लिप्त रहते थे। उनको घर वालों ने, और गाँव वालों ने- ढोंगी कह कर घर से बाहर निकाल दिया,! तो तुलसीदास जी, गंगा जी के घाट पर रहने लगे। और वहीं- प्रभु की भक्ति करने लगे।
जब तुलसीदास "रामचरितमानस " की रचना शुरू कर रहे थे! उसी दिन उनके गांव में एक लड़के का विवाह हुआ, और वह लडका अपनी नववधु को लेकर अपने घर आया। रात को किसी कारण वश उस लड़के की मृत्यु हो गई।
तो उस लड़के की पत्नी भी सती होने की इच्छा से अपने पति की अर्थी के पीछे पीछे जाने लगी।
लोग उसी मार्ग से जा रहे थे- जिस मार्ग में तुलसीदास जी रहते थे।
सब लोग जा रहे थे - तो लड़के की पत्नी की नजर तुलसीदास जी पर पड़ी।
उस नववधु ने सोचा- में अपने पति के साथ सती होने जा रही हूँ!
एक बार इस ब्राह्मण देवता को प्रणाम कर लेती हूँ!
वह नववधु नहीं जानती थी- कि ये तुलसीदास जी है।
उसने तुरंत तुलसीदास जी को पैर छुकर प्रणाम किया,और तुलसीदास ने उसे "अखण्ड सौभाग्यवती " होने का आशीर्वाद दिया!
तब सब लोग हँसने लगे,और बोले: तुलसीदास जी! हम तो सोचते थे,तुम पाखंडी हो, लेकिन तुम तो बहुत बड़े मूर्ख भी हो- यह अर्थी देख रहे हो- इस लड़की का पति मर चुका है।
यह अखण्ड सौभाग्यवती कैसे हो सकती है....? सब बोलने लगे- तू भी झुठा, तेरा राम भी झुठा।
तुलसीदास जी बोले: हम झुठे हो सकते हैं,लेकिन मेरे राम कभी भी झुठे नही हो सकते हैं।
सबने बोला: तब प्रमाण दो।
तुलसीदास जी ने अर्थी को रखवाया,और उस मरे हुये लड़के के पास जाकर उसके कान में बोला: -"राम नाम सत्य " है! ऐसा एक बार बोला तो लड़का हिलने लगा। दूसरी बार फिर बोला तुलसीदास जी ने लड़के के कान में- "राम नाम सत्य "है! लड़का थोडा सचेत हुआ। तुलसीदास जी ने फिर तीसरी बार उस लड़के के कान में बोला- "राम नाम सत्य " है! तो मृतक लड़का अर्थी से नीचे उठ कर बैठ गया। सभी को बहुत आश्चर्य हुआ, कि मृतक कैसे जीवित हो सकता है। सबने तुलसी दास जी को सिद्ध सन्त मान लिया-और तुलसीदास जी के चरणों में दण्डवत प्रणाम करके क्षमा मांगने लगे। तुलसीदास जी बोले:अगर आप लोग यहाँ इस मार्ग से नहीं जाते,तो मेरे राम के नाम को सत्य होने का प्रमाण कैसे मिलता ये तो सब हमारे राम जी की लीला है उसी दिन से मृतक के पीछे राम नाम सत्य है बोलने की प्रथा चल पड़ी..!!
जय श्रीराम 



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