रविवार, 4 अक्टूबर 2015

कल पिघल‍ती चांदनी में


कल पिघल‍ती चांदनी में 
देखकर अकेली मुझको 

तुम्हारा प्यार
चलकर मेरे पास आया था 
चांद बहुत खिल गया था। 

आज बिखरती चांदनी में 
रूलाकर अकेली मुझको 
तुम्हारी बेवफाई 
चलकर मेरे पास आई है 
चांद पर बेबसी छाई है। 
 
कल मचलती चांदनी में 
जगाकर अकेली मुझको 
तुम्हारी याद 
चलकर मेरे पास आएगी 

चांद पर मेरी उदासी छा जाएगी।



*शरद की श्वेत रात्रि में 
प्रश्नाकुल मन 
बहुत उदास 
कहता है मुझसे 
उठो ना 
चांद से बाते करों, 
 
और मैं बहने लगती हूं 
नीले आकाश की 
केसरिया चांदनी में, 
 
तब तुम बहुत याद आते हो 
अपनी मीठी आंखों से 
शरद-गीत गाते हो...!

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