मैं लफ्ज़ ढूँढता ढूँढता रह गया
वो फूल देके बात का इज़हार कर गया
वो फूल देके बात का इज़हार कर गया
ये वफ़ा तो उन दिनों की बात है "फराज़ "
जब मकान कच्चे और लोग सच्चे हुआ करते थे
कौन देता है उम्र भर का सहारा ए फ़राज़
लोग तो जनाज़े में भी कंधे बदलते रहते हैं .
कुछ मुहब्बत का नशा था पहले हमको फ़राज़ .
दिल जो टूटा तो नशे से मुहब्बत हो गई .
ज़िन्दगी तो अपने ही क़दमों पे चलती है फ़राज़ .
औरों के सहारे तो जनाज़े उठा करते हैं
वो रोज़ देखता है डूबते हुए सूरज को फ़राज़ .
काश मै भी किसी शाम का मंज़र होता
समंदर में ले जा कर फरेब मत देना फ़राज़
तू कहे तो किनारे पे ही डूब जाऊं मैं
मुहब्बत के बाद मुहब्बत मुमकिन है फ़राज़
मगर टूट के चाहना सिर्फ एक बार होता है
जब मकान कच्चे और लोग सच्चे हुआ करते थे
कौन देता है उम्र भर का सहारा ए फ़राज़
लोग तो जनाज़े में भी कंधे बदलते रहते हैं .
कुछ मुहब्बत का नशा था पहले हमको फ़राज़ .
दिल जो टूटा तो नशे से मुहब्बत हो गई .
ज़िन्दगी तो अपने ही क़दमों पे चलती है फ़राज़ .
औरों के सहारे तो जनाज़े उठा करते हैं
वो रोज़ देखता है डूबते हुए सूरज को फ़राज़ .
काश मै भी किसी शाम का मंज़र होता
समंदर में ले जा कर फरेब मत देना फ़राज़
तू कहे तो किनारे पे ही डूब जाऊं मैं
मुहब्बत के बाद मुहब्बत मुमकिन है फ़राज़
मगर टूट के चाहना सिर्फ एक बार होता है
जब से लगा है रोग तन्हाइयों का हमें...
एक एक कर के छोड़ गए सब लोग मुझे...
दर्द से हाथ न मिलाते तो और क्या करते!
गम के आंसू न बहते तो और क्या करते!
उसने मांगी थी हमसे रौशनी की दुआ!
हम खुद को न जलाते तो और क्या करते!
क़त्ल सबका उनकी निगाहो ने किया और कातिल बना दिया हमें...
वो हमको पत्थर और खुद को
फूल कह कर मुस्कुराया करते हैं
उन्हें क्या पता कि पत्थर तो पत्थर ही रहते हैं
फूल ही मुरझा जाया करते हैं
फूल कह कर मुस्कुराया करते हैं
उन्हें क्या पता कि पत्थर तो पत्थर ही रहते हैं
फूल ही मुरझा जाया करते हैं
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