शनिवार, 6 जुलाई 2024

धीरे से

 


धीरे से

कुछ कहकर
बदली में छुप जाता है वो चांद..!
निखरा निखरा है
बरसात के बाद आसमान का चेहरा..!
चांदनी में धुली धुली पत्तों की
भींगी शाखें
झुकी जाती है जमीन पर...!
कई नामों से
जैसे कोई बुला रहा हो मुझको...!
हवा यह पाक सी महकी हुई
पेड़ों पर बहती है जब जब
मोती से गिरते है
पत्तों के किनारों से...!
रात कोई
जादू लिए दामन में
चुपके से चली आई है मेरी खिड़की के
बाहर...!
कहती है...
काश !
इस लम्हे में कही आप भी
शामिल होते..!!

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