शनिवार, 6 जुलाई 2024

जैसे कुछ लिख देने से

 


जैसे कुछ लिख देने से

बन ही जाती है
कविता, नज़्म, रुबाई...!
मन में अनुराग भरा हो तो
एक दिन हो ही जाता है प्रेम...!
जंगल में पेड़ों के नीचे
चुपचाप खड़े हो
तो सुनाई देने लगती है
ओस की आवाज़ें...!
डूबने से डरने वालों को
डुबा ही लेती है किताबें..!
ज्ञान की थाह बना ही देती है
'ज्ञानेन्द्रपति'...!
उड़ने की चाह एक दिन
पंख उगा ही देती है...!
मन के द्वंद्वों का ज़वाब ढूंढते
कई लोग बन जाते हैं 'बुद्ध...!'
विचारों की भट्टी तपाते हुए
एक दिन 'अज्ञेय' बना ही देती है...!
आकाश गंगाओं की दूरी पाट कर भी
रुह अपना ठिकाना ढूंढ लेती है..!
जानती हूं ...
एक दिन तुम भी मुझे
मिल ही जाओगे !!

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